Note: Panchkarma Treatment (पंचकर्म चिकित्सा) Available in Sikar (Raj.) by the Govt. Aayush Hospital Click Here for More information
Source : http://health.rajasthan.gov.inपंचकर्म चिकित्सापंचकर्म आयुर्वेद का एक प्रमुख शुद्धिकरण एवं मद्यहरण उपचार है। पंचकर्म का अर्थ पाँच विभिन्न चिकित्साओं का संमिश्रण है। इस प्रक्रिया का प्रयोग शरीर को बीमारियों एवं कुपोषण द्वारा छोड़े गये विषैले पदार्थों से निर्मल करने के लिये होता है। आयुर्वेद कहता है कि असंतुलित दोष अपशिष्ट पदार्थ उतपन्न करता है जिसे ’अम’ कहा जाता है। यह दुर्गंधयुक्त, चिपचिपा, हानिकारक पदार्थ होता है जिसे शरीर से यथासंभव संपूर्ण रूप से निकालना आवश्यक है। ’अम’ के निर्माण को रोकने के लिये आयुर्वेदिक साहित्य व्यक्ति को उचित आहार देने के साथ उपयुक्त जीवन शैली, आदतें तथा व्यायाम पर रखने, तथा पंचकर्म जैसे एक उचित निर्मलीकरण कार्यक्रम को लागू करने की सलाह देते हैं।पंचकर्म एक प्रक्रिया है; यह ’शोदन’ नामक शुद्धिकरण प्रक्रियाओं से संबंधित चिकित्साओं के समूह का एक भाग है। पंचकर्म के पाँच चिकित्सा ’वमन’ ’विरेचन, ’नास्य’, ’बस्ती’ एवं ’रक्त मोक्षण” हैं। दोषों को संतुलित करने के समय पाँच चिकित्साओं की यह शॄंखला शरीर के अंदर जीवविष पैदा करने वाले गहरे रूप से आधारित तनाव एवं रोग को दूर करने में मदद करता है।यह हमारे दोषों में संतुलन वापस लाता है एवं स्वेद ग्रंथियों, मूत्र मार्ग, आँतों आदि अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जित करने वाले मार्गों के माध्यम से शरीर से ’अम’ को साफ करता है। पंचकर्म, इस प्रकार, एक संतुलित कार्य प्रणाली हैI इसमें प्रतिदिन मालिश शामिल है और यह एक अत्यंत सुखद अनुभव है। हमारे मन एवं शरीर व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिये आयुर्वेद पंचकर्म को एक मौसमी उपचार के रूप में सलाह देता है।आयुर्वेद संहिताओं में रोगोपचार की दो विधियॉ बताई गई हैःशोधन और शमनशोधन चिकित्सा- इसमें शारीरिक व्याधियों के कारक दूषित दोषों को शरीर से बाहर निकाल फेंकने से अधिकांश व्याधियां स्वतः ठीक हो जाती है। उसके बाद किया गया उपचार अधिक प्रभावी होता है। पंचकर्म इसी शोधन विधि का तकनीकी नाम है। इसकी क्रम बद्धता निम्न प्रकार हैःपूर्वकर्मःस्नेहनस्वेदनप्रधानकर्मःवमनविरेचनआस्थापन बस्तिअनुवासन-बस्तिशिरो-विरेचनआयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में प्रायः अधिकांश रोगो में रोगानुसार किसी एक कर्म के द्धारा शोधन कराने के बाद ही औषध के आभ्यंतर प्रयोग का विधान है। इससे कोई भी रोग पूर्ण एवं समूल दूर किया जाता है। बिना पंचकर्म के औषध सेवन से रोगो का शमन हो सकता है किन्तु समूल नाश नही हो सकता। अतः रोगो को समूल नष्ट करने एवं शोधन के बाद रसायन सेवन से कायाकल्प करने में 'पंचकर्म' पद्धति आवश्यक है।पंचकर्म के विभिन्न कर्मो का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार हैःपूर्वकर्मःस्नेहनः-इस विधि में शरीर के विकृत दोषो को बढाकर बाहर निकालने के लिए घृतपान, तेलपान एवं अभ्यंग का प्रयोग किया जाता है।स्वेदनः-इस विधि की अनेक उपविधियॉ है जिनके द्धारा शरीर से पसीना निकाल कर अनेक रोगो का उपचार किया जाता है। उक्त दोनों कर्म नियमानुसार प्रत्येक कर्म के पहले करना आवश्यक है।प्रधानकर्मः वमनः-इस कर्म के द्वारा कफ जन्य जटिल रोगों का उपचार किया जाता है जैसे-कास-श्वास-अजीर्ण-ज्वर इत्यादि । इसमें औषधीय क्वाथ को पिलाकर उल्टी (वमन) कराई जाती है, जिससे विकृत कफ एवं पित्त बाहर आ जाने से रोग शांत होता है।विरेचनः-पैत्तिक रोगों के लिए उक्त कर्म लाभदायक है। साथ ही उदर रोगों में इससे लाभ प्राप्त होता है, जैसेः- अजीर्ण-अम्लपित्त, शिरःशूल, दाह, उदरशूल, विवधं गुल्म इत्यादि। इसके लिए भी विभिन्न चरणों मे भिन्न-भिन्न औषध देने का प्रावधान है।आस्थापन बस्तिः-इसका दूसरा नाम मेडिसिनल एनिमा देना भी है। आयुर्वेद के अनुसार इस प्रक्रियां में खुश्क द्रव्यों के क्वाथ की बस्ति गुदा मार्ग से देकर दोषो का शोधन किया जाता है। इससे पेट एवं बडी आंत के वायु संबधी सभी रोगों में लाभ मिलता है।अनुवासन बस्तिः-इस प्रक्रिया में स्निग्ध (चिकने) पदार्थो जैसे दूध, धी, तेल आदि के औषधीय मिश्रण का एनिमा लगाया जाता है। इससे भी पेट एवं बडी आंत के रोगों में काफी लाभ मिलता है, जैसेः- विबंध, अर्श-भगन्दर, गुल्प, उदरशूल, आध्मान (आफरा) इत्यादि ।उपरोक्त दोनों प्रक्रियाओं को आयुर्वेद में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इन प्रक्रियाओं से समस्त प्रकार के वातरोगों एवं अन्य रोगों में स्थाई लाभ मिलता है।शिरोविरेचनः-
इस विधि में नासा-मार्ग द्धारा औषध पूर्ण एवं विभिन्न तेलों का नस्य (SNUFF) दिया जाता है तथा सिर के चारों तरफ पट्ट बन्धन करके तैल धारा का प्रयोग किया जाता है। इन प्रयोगों से सिर के अन्दर की खुश्की दूर होती है। तथा पुरानाजमा बलगम छींक आदि के माध्यम से बाहर आ जाता है और रोगी को स्थाई लाभ मिल जाता है। उर्ध्वजत्रुगत (ई.एन.टी) रोगों, सभी तरह के शिरोरोगों एवं नेत्र रोगो हेतु उक्त प्रक्रिया काफी लाभदायक है। इससे पुराने एवं कठिन शिरःशूल, अर्धावभेदक, अनिद्रा, मानसिक तनाव (टेंशन) स्पोन्डलाइटिस इत्यादि रोगों मे काफी फायदा होता है।
वर्तमान में पंचकर्म चिकित्सा पद्धति काफी लोकप्रिय हो रही है। लेकिन शास्त्र सम्मत तरीके से न करने पर इसके विपरीत प्रभाव भी होते है, जो बाद मे अधिक जटिलता उत्पन्न कर देते है।
वर्तमान मे, राजस्थान के, राजकीय आयुर्वेद 'अ' श्रेणी चिकित्सालय झालावाड में राजस्थान आयुर्वेद महाविधालय, उदयपुर से संबद्ध चिकित्सालय राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान के चिकित्सालय, जयपुर, राजस्थान आयुर्वेद विश्वविद्यालय चिकित्सालय, जोधपुर उक्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध है। राज्य सरकार की योजनानुसार शीध्र ही इसे पर्यटन स्थलों के विभागीय चिकित्सालयों में भी प्रारम्भ करना प्रस्तावित है।
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